Wednesday, July 23, 2008

फिर निशाना बना मीडिया...

चाहे आतंकवाद के खिलाफ़ छेड़ी गयी जंग में अमेरिका के आगे मजबूर अफगानिस्तान में क़ानून व्यवस्था को ताक पर रखकर मानवाधिकारों के उल्लंघन की ख़बरें हों या फिर ज़िम्बाब्वे के हालात... तस्वीर कितनी भी भयानक क्यों न रही हो... लेकिन हक़ीक़त से नज़रें मिलाकर... बिना किसी डर या नफ़े नुक़सान के बारे में सोचे... ज़मीनी हक़ीक़त लोगों के सामने लाने की ज़िम्मेदारी मीडिया ने बख़ूबी निभाई है... एमनेस्टी इंटरनेशनल के आंकड़ों पर नज़र डालें तो अमेरिका की "आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई" द्वारा दुनिया को सुरक्षित बनाने के दावे खोखले ही हैं... गुवान्तानावो की खाड़ी में बिना किसी आरोप के... ट्रायल के दौरान बन्दियों से अमानवीय व्यवहार की ख़बरों ने ख़ूब सुर्खियां बटोरीं... अगर मीडिया कर्मियों में... सच्चाई लिखने दिखाने का ख़ौफ समाया होता... तो शायद ये बातें आप तक नहीं पहुंच पायीं होतीं... ऐसी ही तमाम ख़बरों ने बन्दूक के साये में दम तोड़ दिया होता... हालिया वक्त में अगर देखा जाय तो मीडिय की जड़ें मज़बूत ज़रूर हुईं हैं... लेकिन मीडिया को ख़तरा भी काफ़ी बढ गया है... विदेशी पत्रकार डेनियल पर्ल की हत्या की ख़बरों ने दुनिया भर में इस बात की चर्चा ज़ोरशोर से शुरू करा दी... कि आख़िर आज के दौर में मीडियाकर्मी कितने सुरक्षित रह गये हैं... भारत में भी पिछले कई सालों के आंकड़े तो यही साबित करते हैं कि आज समाज को आइना दिखाने वाले लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को दरकाने की कोशिशें भी की जाने लगी हैं... चाहे मुम्बई में निजी समाचार चैनल के दफ्तरों पर की गयी तोड़फोड़ हो... या फिर दक्षिण भारत में एक राजनेता के रिश्तेदार के समाचार पत्र कार्यालय में आग लगाये जाने की घटना... या फिर जनवरी/फरवरी के महीने में मुम्बई में एक ख़ास राजनैतिक पार्टी के उपद्रवियों द्वारा एक प्रतिष्ठित अंग्रेज़ी समाचार पत्र के सम्पादक के घर पर हुए हमले... सभी यही दर्शाते हैं कि आज मीडिया की स्वतन्त्रता पर हमले दिनो-दिन बढ़ते ही जा रहे हैं... ऐसे में इसबात को तय हमे और आपको ही करना है... कि आप क्या चाहते हैं... दबे कुचले मीडिया की मौजूदगी में एक निरंकुश दुनिया... या फिर बेबाक पत्रकारिता के साये में पनपता एक सभ्य समाज... (मेरी ये राय खुद की है... मैने जब देखा कि एक निजी चैनल के पत्रकार को झांसी पुलिस ने उस समय लाठी डंडों से पीटकर हॉस्पिटल पहुंचा दिया... जब वो एक स्थानीय कॉलेज के विद्यार्थियों द्वारा दिये जा रहे धरने की कवरेज के लिये गया था... पत्रकार को पुलिस के आलाधिकारियों ने ना सिर्फ जमकर पीटा... बल्कि उसका कैमरा और मोबाइल फ़ोन भी ग़ायब करा दिया गया...)

3 comments:

अनिल कुमार वर्मा said...

प्रिय सत्येन्द्र, ब्लाग की दुनिया में तुम्हारा स्वागत है। तुम्हारा लेख पढ़ा। सराहनीय प्रयास। इसी तरह से लिखते रहो। लिखने से परहेज न करना। आदत डाल लो।

Ritu Raj Gupta said...

प्रिय सत्येन्द्र,
ब्लॉग की दुनिया में आपका स्वागत है... शुरुआत अच्छी है ... लिखते रहो ... बेखौफ लिखते रहो ... प्रतिक्रियायें तो आयेंगी ही ... उम्मीद करता हूं कि आपके ब्लॉग पर नये नये विचार पढ़ने को मिलते रहेंगे ...
ऋतु राज गुप्ता

satyendra Yadav said...
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