Sunday, April 12, 2009

कुछ लम्हे, जाने-पहचाने से....

१८ फरवरी २००९ को आंध्र प्रदेश से अपने घर, उत्तर प्रदेश जाते वक्त ट्रेन में मैने हाईस्कूल का अपना गैंग देखा... हमारा गैंग... मैं, आशीष, विकास, सुबोध, देवेश और रश्मि... वी वर द मोस्ट नोटोरियस ऐंड द मोस्ट ब्रिलिएंट एमंग्स्ट ऑल... दस सालों पहले हम भी इसी तरह धमाचौकड़ी मचाते थे... साथ साथ खेलते-कूदते, खाते-पीते, पिटाई होने पर रोते भी... लेकिन १८ फरवरी को जो बच्चे मुझे मेरे ट्रेन के कम्पार्टमेंट में दिखे, वो ज्यादा नटखट थे... खै़र मुझे उन्हें देखकर अपना बचपन और स्कूलडेज़ याद आ गये... उन्हीं दिनों के समर्पित कुछ लाइनें यूंही उसी वक्त काग़ज़ पर उकेर दीं... अब सोचता हूं कि आप लोग भी मेरी यादों के साथी बनें...

कुछ सूनी सी आवाज़ें, रह-रह कर मुझे बुलाती हैं,
यादों के अंधियारे गलियारे में, स्मृति दीप जलाती हैं।
यात्रा के कुछ अद्भुत लम्हे, पाठ बड़ा सिखलाते हैं,
जो ना समझे इनको तो, रह-रह कर पाठ पढ़ाते हैं।
यात्रा के लम्बे कठिन सफर पर, इस ऐसी मुझे तस्वीर दिखी,
विद्यालय के धवल चित्र सी, थी जो मित्रों की टोली संग बनी।

सत्येंद्र यादव "अकिंचन"

1 comment:

Deepti said...

great aap kavi hote ja rahe hai
....................zyada sad song sunne se yahi haalt hoti hai